खोया सिक्का (कविता) प्रतियोगिता हेतु -23-Jun-2024
खोया सिक्का (कविता) प्रतियोगिता हेतु
कभी किसी से जो ना हारे, वह ख़ुद से है जाता हार।
जब अपना ही सिक्का खोटा, तन- मन दोनों को देता जार।
कभी भी ना वह ख़ुद खुश रहता, ना ख़ुश रहता है परिवार।
आज वही सिक्का खोया है, पूरा जग लगता है अंँधियार।
फूट-फूट मेरा मन रोया, खोटे सिक्के से मुझेको प्यार।
एक ही जीवन का उद्देश्य, खोया सिक्का मिल जाए यार।
हम भी प्रभु के सिक्के ही हैं, खोज रहा है एक-एक द्वार।
मानव मन की मिटा के कटुता, मिटा दें जग से हाहाकार।
हम तो बन गए ताश के पत्ते, प्रभु बनाए इक्का यार।
प्रभु का सिक्का भी है खोया, परिवर्तन की है दरकार।
साधना शाही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
Mohammed urooj khan
25-Jun-2024 12:19 AM
👌🏾👌🏾
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